ख़लीफ़ा बनाने का मक़सद | Khalifa Banane Ka Maqsad

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 ख़लीफ़ा बनाने का मक़सद | Khalifa Banane Ka Maqsad

ख़लीफ़ा बनाने का मक़सद | Khalifa Banane Ka Maqsad

ख़लीफ़ा बनाने का मक़सद ही था कि वह अल्लाह के अहकाम मखलूक तक पहुंचाए और रब तआला के अवामिर व नवाही का निज़ाम जारी करे, मुसलमानों की अक्सरियत जब इस निज़ाम को चाहने वाली हो तो उम्मते मुस्लेमा का कुफ़्फ़ार पर गल्बा रहता है लेकिन यह उसी वक़्त होता है जब मुसलमान अपने ईमान व आमाल में कामिल हों, कामिल ईमान का मैयार यह है कि अल्लाह तआला और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुहब्बत तमाम मुहब्बतों पर ग़ालिब हो और अल्लाह की राह में मौत की तमन्ना कामिल और ग़ालिब हो । 

मुसलमानों की जुबूं हाली की वजह :

खिलाफ़ते राशिदा अदलिया के बाद मुसलमानों पर दुनिया की मुहब्बत ग़ालिब आ गई। अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुहब्बत उन के दिलों में रासिख़ न रही, दुनिया की मुहब्बत की वजह से मौत से उनके दिलों में कराहत पैदा हो गई और अल्लाह की राह में जान देने का जज़्बा कामिल न रहा, जिसकी वजह से उम्मते मुस्लेमा बदहाली का शिकार हो गई, ग़ैरों पर उस को ग़ालिब रहने की नेमत से महरूम कर दिया गया ।

सुनन अबू दाऊद और बैहक़ी की हदीस में उम्मते मुस्लेमा की इस बदहाली का ज़िक्र निहायत ही अलमनाक सूरत में वारिद है। हज़रत सूबान से रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः

ऐ मुसलमानो! क़रीब है कि काफिरों की जमाअतें तुम पर हमला आवर होने के लिये इस तरह एक दूसरे को बुलायेंगी जैसे किसी प्याले में खाना रखा हो और उसे खाने के लिये हर तरफ़ से लोगों को बुलाया जाये, सहाबा किराम ने अर्ज़ किया कि हुजूर! क्या उस वक़्त हम क़लील होंगे? फ्रमाया, नहीं तुम उस वक्त बहुत कसीर तादाद में होगे लेकिन तुम उस वक्त सैलाब के झाग और उसके खस व ख़ाशाक की तरह होगे । (यानी ईमानी कुव्वत व शुजाअत तुम में बाक़ी न रहेगी) अल्लाह तआला तुम्हारी हैबत और तुम्हारा रोब दुश्मन के दिल से निकाल देगा और तुम्हारे दिलों में बुज़दिली और कमज़ोरी पैदा कर देगा सहाबा किराम ने अर्ज़ किया हुजूर बुज़दिली और कमज़ोरी का सबब क्या होगा? 

फ़रमायाः दुनिया की मुहब्बत और मौत की कराहत ।

ज़ाहिर है कि जो शख़्स दुनिया से मुहब्बत करेगा मौत उसे नापसंद होगी । अर्सा दराज़ से मुसलमान इसी बदहाली में मुब्तला हैं और मौजूदा दौर में यह बदहाली ऐसी ख़ौफ़नाक सूरत इख़्तेयार कर गई है कि इसके नताईज के तसव्वुर से भी दिल लरज़ जाता है। 

ख़्याल रहे कि हर दौर में नेक लोग, असहाबे इल्म व तक़वा रहे हैं, इन्हीं के दम कदम से निज़ामे दुनिया चल रहा है और दुनिया की बक़ा है लेकिन अक्सरियत जब गुनाहों में मुब्तला हो जाती है तो कम तादाद में नेक लोग भी हलाकत की जद में आ जाते हैं अगरचे वह हलाकत उनके लिये अज़ाब नहीं होती, जैसा कि हदीस शरीफ़ में वारिद है:

यानी जब अल्लाह तआला किसी कौम पर अज़ाब भेजता है तो नेक व बद सभी उसमें हलाक हो जाते हैं फिर जब वह उठाये जायेंगे तो हर एक का उठाया जाना उसके अच्छे या बुरे आमाल के मुताबिक होगा। 

(बुख़ारी जिल्द २ सफा १०५३ )

मुसलमान अगर अपनी अज़मते रफ़्ता को हासिल करना चाहते हैं और उनकी तमन्ना यह है कि वह काफिरों पर ग़ालिब आ जायें तो उसका वाहिद हल यह है कि तमाम मुसलमान मजमूई तौर पर कामिल ईमान रखें, अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुहब्बत पर किसी और चीज़ को तरजीह न दें, इसी मुहब्बत और कामिल ईमान की वजह से जज़्बए शौके शहादत पैदा करें तो कोई वजह नहीं कि मुसलमान अपनी इस अज़मते दूर रफ़्ता को हासिल न कर लें जो सहाबा किराम के दौर में कुफ़्फ़ार पर मुसलमानों को हासिल थी कि मुसलमानों की हैबत से कुफ़्फ़ार के आज़ा पर कपकपी तारी होती ।

📗 तज़किरतुल अंबिया

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