हज़रत नूह अलैहि सलाम | Hazrat Nooh Alaihissalam

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 हज़रत नूह अलैहि सलाम | Hazrat Nooh Alaihissalam

हज़रत नूह अलैहि सलाम

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम

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हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के बाप का नाम लमक बिन मतू शल्ख बिन अखनूख़ (यह इदरीस अलैहिस्सलाम का नाम)

आप अलैहिस्सलाम को चालीस साल के बाद ऐलान नबुव्वत का हुक्म दिया गया और साढ़े नौ सौ साल आप अपनी क़ौम में ठहरे और अपनी क़ौम को तबलीग़ फ़रमाई । 

अल्लाह तआला ने फरमायाः

तो वह उनमें पचास साल कम हज़ार बरस रहे ।

तूफान के बाद आप दो सौ पचास साल ज़िन्दा रहे आपकी कुल उम्र एक हज़ार दो सौ • चालीस साल है अगरचे इसमें और कौल भी हैं लेकिन ज़्यादा तौर पर इसी कौल को सही कहा गया है।

नूह अलैहिस्सलाम ने कौम को क्या तबलीग़ की ?

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने साढ़े नौ सौ साल अपनी कौम को अल्लाह की वहदानियत, गुनाहों से बाज़ रहने की तबलीग़ फ़रमाई और साथ साथ अल्लाह तआला के अज़ाब से डराते रहे।

आपने फ़रमाया : ऐ मेरी कौम ! मैं तुम्हारे लिये जाहिर तौर पर डर सुनाने वाला हूं कि अल्लाह की बंदगी करो और उससे डरो और मेरा हुक्म मानो वह तुम्हारे कुछ गुनाह बख़्श देगा और एक मुक़र्रर मियाद तक तुम्हें मोहलत देगा, बेशक अल्लाह का वादा जब आता है हटाया नहीं जाता, काश तुम जानते ।

आप ने अपनी कौम को और यह फ़रमाया:

अगर तुमने अल्लाह के बगैर किसी और की इबादत की तो मैं क़यामत के दिन के बहुत बड़े अज़ाब का तुम्हें खौफ दिलाता हूं।

(getButton) #text=( यह भी पढ़ें : हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम  ) #icon=(link) #color=(#2339bd)

आपने तबलीग़ फ़रमाते हुए मजीद इरशाद फरमायाः

अगर तुमने अल्लाह के बगैर और किसी की इबादत की तो मैं तुम्हें दुनिया और आख़रत के दर्दनाक अज़ाब से डराता हूं।

इस आयत करीमा में अपनी कौम को उख़रवी अज़ाब के साथ साथ दुनिया में तबाही व बर्बादी से भी वाज़ेह तौर पर डरा दिया गया कि शायद कौम पर कुछ असर हो जाये। 

और आपने फ़रमायाः

और मैं इस पर तुम से कुछ उजरत नहीं मांगता मेरा अज तो उस पर है जो सारे जहानों का रब है।

यानी मैं जो तुम्हें अल्लाह तआला की वहदानियत और सिर्फ उसी की इबादत करने और सिर्फ उसी से डरने और उसके बग़ैर और किसी की इबादत करने पर दीन व दुनिया की तबाही से डराने पर कोई उजरत माल व दौलत का मुतालबा तो नहीं कर रहा अगर तुम ने इस राह का तअय्युन कर लिया जो मैं बता रहा हूं तो तुम्हारी कामयाबी है वरना तुम ज़लील हो जाओगे तबाह व बर्बाद हो जाओगे दीन व दुनिया में ख़सारे में पड़ जाओगे। अल्लाह तआला के अहकाम तुम तक पहुंचाने में मुझे तुम से कोई ग़र्ज़ नहीं किसी मनसब माल व दौलत के हुसूल का कोई लालच नहीं सिर्फ अल्लाह के हुक्म से अल्लाह की रज़ामंदी के लिये तुम्हें तबलीग़ कर रहा हूँ। मेरे अल्लाह तआला को ही मुझे अज व सवाब अता करना है उसकी बे हिसाब रहमत के होते हुए मुझे तुमसे कुछ ग़र्ज़ नहीं ।

नूह अलैहिस्सलाम की तबलीग़ का कौम पर क्या असर हुआ ?

आप अलैहिस्सलाम ने साढ़े नौ सौ साल दिन रात तबलीग की लेकिन कौम करीब आने के बजाए दूर होती चली गई आपकी तक़रीर को न सुनने की ग़र्ज़ से अपने कानों में उंगलियां दूस लेते। (मआज़ल्लाह) आप से नफ़रत करते हुए अपने चेहरों को ढांप लेते। अल्लाह तआला ने फ्रमाया :

अर्ज़ की ऐ मेरे रब मैंने अपनी कौम को रात दिन बुलाया तो मेरे बुलाने से उनका भागना बढ़ा ही है और मैंने जितनी बार उन्हें बुलाया कि तू उनको बख़्शे उन्होंने अपने कानों में उंगलिया दे दीं और अपने कपड़े ओढ़ लिये और हट धर्मी की और बड़ा गुरूर किया ।

यानी नूह अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला के हुजूर अर्ज़ किया ऐ अल्लाह! मैंने तेरे अहकाम पहुंचाने में कोई कोताही सुस्ती नहीं की, लेकिन मेरी कौम मानने और क़रीब आने के बजाए दूर होती चली गई ।

जैसे जैसे आप तबलीग़ फ़रमाते रहे कौम के दूर होने में कमी आने के बजाए ज़्यादती होती रही अल्लाह के नबी की कौम पर शफ़क़त का यह आलम है कि आप उनको उस राह पर चलाना चाहते जिस पर चलने से उनको नजात हासिल हो । अल्लाह उनकी मग़िफ़रत करे अल्लाह उनसे राज़ी हो जाये और वह अल्लाह के क़रीब हो जायें। लेकिन क़ौम की बद बख़्ती का यह आलम है कि आप से इतनी ज़्यादा नफ़रत करती है कि आप की बात सुनने के लिये तैयार नहीं और आप को देखना उन्हें गवारा नहीं, वह कानों में इसलिये उंगलियां ठूंस रखते ताकि आप का कलाम और आपके पेश कर्दा दलायल को न सुन सकें अपने चेहरों को ढांप कर रखते कि मआज़ल्लाह हमें नूह (अलैहिस्सलाम) की शक्ल भी नज़र न आये । अल्लाह का जिन पर फ़ज़्ल हो वह अल्लाह वालों की बातें सुन कर ईमान लाते हैं गुनाहों से बाज़ रहते हैं नेकी व तक़वा इख़्तेयार करते हैं जो शैतान की गिरफ्त में होते हैं वह हिदायत देने वालों को मलायत, फ़िस्ताइयत कदामत पसंदी के नाम देकर दीन के बाग़ी हो जाते हैं 1

नूह अलैहिस्सलाम ने तबलीग़ का हर तरीका आज़माया :

आप अलैहिस्सलाम ने हर वक़्त तबलीग़ की, यानी दिन रात तबलीग़ की फिर आपने हर शख़्स को आहिस्ता आहिस्ता नरम लहजा में समझाया कि अल्लाह की इबादत करो, रब से डरो लेकिन कौम ने कानों में उंगलियां ठूंस कर सुनने से इंकार किया अपने चेहरों पर कपड़ा डाल कर आप को देखने से बेज़ारी ज़ाहिर की अपने कुफिया एतिकादात पर हटधर्मी से कायम रहे तकब्बुर की वजह से अहकामे बारी तआला से इंकार किया ।

फिर आप ने जाहिरन आम मजालिस में उनको ख़िताबात किये और राहे हक़ का सबक दिया, लेकिन उन पर कुछ असर न हुआ फिर आप ने एलानिया तौर पर और आहिस्ता आहिस्ता दोनों तरह से तबलीग़ की, लेकिन यह तरीका भी कौम को राहे रास्त पर न ला सका। इसी मज़मून को अल्लाह तआला ने यूं पेश फ़रमायाः

नूह अलैहिस्सलाम ने कहा फिर मैंने उन्हें ऐलानिया बुलाया फिर मैंने उन से बा ऐलान भी कहा और आहिस्ता खुफ़िया भी कहा ।

(getButton) #text=( यह भी पढ़ें : ख्वाजा सैयद नसीरुद्दीन महमूद रोशन चराग़ देहलवी अलैहिर्रहमा  ) #icon=(link) #color=(#2339bd)

कौम के कितने लोग ईमान लाए ?

इतना अर्सा तबलीग़ करने के बावजूद ईमान लाने वालों का मुख़्तसर गिरोह नज़र आता है तीन आपके बेटे साम, हाम, याफ़स और तीन उनकी बीवियां और एक नूह अलैहिस्सलाम की ज़ौजा और सत्तर मर्द औरतें । यही ईमानदार लोग कश्ती पर भी सवार थे यानी बमअ नूह अलैहिस्सलाम के कुल अठत्तर आदमी कश्ती में सवार थें जिन में मर्द और औरतें बराबर बराबर तादाद में थे।

नूह अलैहिस्सलाम की कौम के ईमान न लाने की वजह : 

तो आप की क़ौम के सरदार जो काफिर हुए थे बोले हम तो तुम्हें अपने ही जैसा आदमी देखते हैं।

यानी एक वजह कौम के ईमान न लाने की यह थी कि नूह अलैहिस्सलाम को अपने जैसा बशर समझने लगे कि हमारे ही जैसा बशर कभी नबी नहीं बन सकता वह इससे बे ख़बर थे कि नबी को दो हालतें हासिल होती है। एक बशरी और दूसरी नूरानी । वह कहने लगे नबी तो रिश्ता होना चाहिये ।

तो आपकी कौम के जिन सरदारों ने कुफ़ किया बोले, यह तो नहीं मगर तुम जैसा आदमी, चाहता है कि तुम्हारा बड़ा बने और अल्लाह चाहता तो फ़रिश्ते उतारता । हम ने तो यह अगले बाप दादाओं में न सुना।

यानी उन्होंने यह कहा है कि हम नूह अलैहिस्सलाम पर क्यों ईमान लायें यह तो हमारे जैसा है यह नबुव्वत का दावा करके हम से बड़ा बनना चाहता है हमने तो अपने किसी बाप दादा से यह नहीं सुना कि बशर भी नबी होता है अगर रब को नबी बनाना ही होता तो किसी रिश्ते को नबी बनाकर भेज देता ।

२. दूसरी वजह कौम के ईमान न लाने की यह थी कि हम आला लोग और घटिया लोग एक ही मज़हब पर नहीं हो सकते, कौम ने कहा :

और हम नहीं देखते कि तुम्हारी पैरवी किसी ने की हो मगर हमारे कमीनों ने सरसरी नज़र से।

यानी कौम के सरदार कहने लगे कि तुम पर ईमान ग़रीब घटिया शान वाले लाये हैं और उन्होंने भी बगैर सोच व समझ के सरसरी नज़र से ईमान क़बूल किया है वह भी सोचते तो ईमान न लाते, या यह कि उनमें सोचने की ताकत ही नहीं थी। ऐसे घटिया लोगों के साथ हम भी ईमान लाकर उन जैसे हो जायें यह कैसे हो सकता है? गोया तकब्बुर की वजह से वह ईमान न लाये।

बोले : क्या हम तुम पर ईमान ले आयें और तुम्हारे साथ (ईमान लाने वाले) कमीने लोग हैं?

३. तीसरी वजह उन के ईमान न लाने की यह थी कि तुम और तुम्हारे साथ ईमान लाने वाले हम पर कोई ज़्यादा फ़ज़ीलत तो नहीं रखते। यानी नबी की शान को समझने से क़ासिर रहे। नबी की अज़मत को न समझ सके और यह बात उन्हें न समझ में आई कि रब तआला के नज़दीक किसी के माल व दौलत की ज़्यादती अफ़ज़ल होने का सबब नहीं, बल्कि ईमान और तक़वा अफ़ज़लियत का सबब है। यही रब तआला की कुर्बत का सबब है। उनके ईमान न लाने की इस वजह का रब तआला ने ज़िक्र फ़रमाया:

और हम तुम में अपने ऊपर कोई बड़ाई नहीं पाते।

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का जवाब :

क्या तुम ताज्जुब करते हो इस पर कि कोई तुम्हारे पास नसीहत तुम्हारे रब की तरफ से एक आदमी के ज़रिये जो तुम से है ताकि वह डराए तुम्हें (ग़ज्बे इलाही से) और ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ और ताकि तुम पर रहम किया जाये।

यानी आपने उनके शुबह का इज़ाला फ़रमाया वह यह नहीं समझ सकते थे कि कोई इंसान भी नबुव्वत व रिसालत के मर्तबा पर फायज़ हो सकता है और ज़ाते रब्बानी से बराहे रास्त फ़ैज़ हासिल करके लोगों तक पहुंचा सकता है उनका ख़्याल था कि यह काम कोई फ़रिश्ता ही कर सकता है इसलिये फ़रमाया कि तुम्हारी हैरत व परेशानी बे महल है अल्लाह तआला अगर अपने किसी कामिल और बरगुज़ीदा बंदे को नेमते नबुव्वत से सरफराज़ करना चाहे तो इसमें कोई इस्तेहाला नहीं ।

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने उनके ईमान से इंकार की इस वजह का दो टूक अलफ़ाज़ में जवाब दिया।

और मैं उन को निकालने वाला नहीं जो ईमान ले आये हैं बेशक वह अपने रब से मुलाक़ात करने वाले हैं अलबत्ता मैं तुम्हें देखता हूं कि तुम ऐसी कौम हो जो ( हक़ीक़त से) नावाकिफ है। 

यानी उन्होंने नूह अलैहिस्सलाम से कहा कि हर वक़्त आप के इर्द गिर्द ख़स्ता हाल लोग हल्का बांधे बैठे होते हैं हमारा तो जी नहीं चाहता कि ऐसी जगह जायें जहां इस किस्म के गंदे ग़लीज़ और कमीने लोगों का जमघटा हो आप उनको अपने हां से निकल जाने का हुक्म दें तब हम आप के पास आयेंगे। इस किस्म का मुतालबा आपको याद होगा कुफ़्फ़ार ने हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम से भी किया था। हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने साफ़ जवाब दिया यह नामुमकिन है कि मैं उन हक़ परस्तों को तुम्हारी ख़ातिर अपने हां से निकल जाने का हुक्म दूं। तुम अपनी जगह बड़े लोग हो लेकिन मेरी नज़र में जो क़दर मंज़िलत शमा नूर के उन दिल सोख़्ता परवानों की है वह गिद्धों की नहीं हो सकती जो दुनिया की मुतअफ़्फ़न लाश पर टूट पड़ती है। यहां क़दर व मंज़िलत का मैयार अख़्लास व तक़वा है दौलत व सरवत नहीं । हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने उन्हें यह भी कहा कि तुम्हें तो अपनी अक़्ल व दानिश पर बड़ा नाज़ होगा लेकिन मेरे नज़दीक तो तुम अंजान और नावाकिफ लोग हो जिन्हें अब तक यह भी मालूम नहीं कि शर्फ़े इंसानियत का राज़ कसरते माल में मुज़मिर नहीं बल्कि दिल की पाकी, किरदार की बुलंदी और अख़लाक की पुख़्तगी में है।

📗 तज़किरतुल अंबिया

आने वाली अगली पोस्ट : नूह अलैहिस्सलाम की कौम पर इब्तेदाई वबाल

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अल्लाह तआला ने अपने रसूल हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का नाम अब्दुश शकूर रखा है.

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📗 ( तफ़सीरे नईमी )

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नमाज़ के औक़ात सब से पहले किसने मुक़र्रर फ़रमाए?

नमाज़ के औक़ात सब से पहले हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने मुक़र्रर फ़रमाए.

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📗 ( तफ़सीरे नईमी )

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