Ambiya E Kiram Gunahon Se Pak Hai | अंबियाए किराम गुनाहों से पाक हैं

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Ambiya E Kiram Gunahon Se Pak Hai | अंबियाए किराम गुनाहों से पाक हैं

Ambiya E Kiram Gunahon Se Pak Hai | अंबियाए किराम गुनाहों से पाक हैं
Ambiya E Kiram Gunahon Se Pak Hai

अंबियाए किराम गुनाहों से पाक हैं:

अंबियाए किराम तमाम सग़ायर और कबायर गुनाहों से पाक होते हैं ( माअज़ल्लाह ) अंबियाए किराम से गुनाह सर ज़द हों यह हो नहीं सकता अल्लामा राज़ी रहमतुल्लाहि अलैहि ने इस पर कई दलीलें कायम की हैं आप फरमाते हैं:

1. अगर अंबियाए किराम से गुनाह सर ज़द हों तो उनका मर्तबा अपनी उम्मतों के नाफरमान, गुनाहगार लोगों से भी कम होगा और यह जायज़ नहीं, वजह यह है कि अंबियाए किराम के मरातिब बहुत बुलंद होते हैं उन्हें आला दर्जा की बुजुर्गी और शराफ़त हासिल होती है जो आला दर्जा रखते हों उनसे गुनाह सर ज़द हों तो वह बहुत ज्यादा बुरे समझे जाते हैं अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

ऐ नबी की बीवियों! जो तुममें सरीह हया के ख़िलाफ़ कोई जुर्रत करे उस पर औरों से दुगना अज़ाब होगा।

इससे मुराद शौहर की इताअत में कोताही करना और उसके साथ बद अख़लाक़ी से पेश आना है क्योंकि बदकारी से अल्लाह तआला अंबिया की बीवियों को पाक रखता है। बहरहाल जिस शख़्स की खुसूसियत और फ़ज़ीलत ज़्यादा होती है उससे अगर क़सूर वाक़ेय हो तो वह क़सूर भी दूसरों के क़सूर से ज़्यादा सख़्त क़रार दिया जाता है ।

इसी तरह महसन से बदकारी सर ज़द होने में रज्म किया जाता है और ग़ैर महसन को एक सौ कोड़े लगाये जाते हैं क्योंकि महसन की शान ग़ैर महसन से इसलिये जायद है कि वह शादी शुदा है उससे बदकरी सर ज़द होना अज़ीम जुर्म समझा जायेगा । जबकि इस पर भी इजमाअ है कि नबी का मक़ाम उम्मत के किसी फ़र्द से भी कम नहीं हो सकता तो गुनाहगारों से कम दर्जा कैसे हो सकता है?

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2. गुनाहगार फ़ासिक होता है और अगर नबी से गुनाह सर जद हों तो वह ( माअज़ल्लाह ) फ़ासिक होंगे और फ़ासिक की शहादत क़बूल नहीं क्योंकि अल्लाह तआला ने फ़रमायाः अगर कोई फ़ासिक तुम्हारे पास ख़बर लाये तो तहक़ीक़ कर लो।


3. अंबियाए किराम ( Prophets ) से अगर गुनाहे कबीरा सर ज़द होना जायज़ हो सके तो उनको ज़र करना और सख्ती से रोकना ज़रूरी हो जायेगा इस तरह अंबियाए किराम का ईजा पहुंचाना हराम नहीं होगा हालांकि अंबियाए किराम को ईज़ा पहुंचाना हराम है। 

अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमायाः
बेशक जो लोग ईज़ा देते हैं अल्लाह उसके रसूल को उन पर अल्लाह की लानत है दुनिया और आख़रत में ।

4. हर नबी की उम्मत पर लाज़िम होता है कि वह अपने नबी की ताबेदारी करें जैसे हमें हुक्म दिया गया है।

अल्लाह तआला ने नबी करीम की ज़बाने मुबारक से कहलाया 'मेरी ताबेदारी करो' अगर ( माअज़ल्लाह ) आप से गुनाह सर ज़द होने जायज़ हो सकें तो आप की उम्मत को आपके गुनाहों की ताबेदारी करना वाजिब होगा इस तरह गुनाह करने हराम भी हों और गुनाहों में नबी की ताबेदारी वाजिब भी हो, एक ही वक़्त में एक काम हराम भी हो और वाजिब भी हो, यह कैसे मुमकिन हो सकता है?

5. हमारी अक़्ल वाज़ेह तौर पर यह काम करती है कि नबी का मुकाम बहुत बुलंद होता है नबी अल्लाह तआला की वही ( कुरआन ) का अमीन होता है और नबी अल्लाह के बंदों और उसकी ज़मीन में अल्लाह का ख़लीफ़ा होता है। यह कैसे हो सकता है कि वह अल्लाह के फरमान को सुनते हुए कि "यह काम न करो" फिर वह अपनी लज़्ज़ात को तरजीह दे कर वह काम करे? अल्लाह के रोकने और उसके अज़ाब के ख़ौफ़ की तरफ तवज्जोह न दे। यह बहुत बुरा और नामुमकिन है।

6. जो लोग गुनाहों का इर्तकाब करते हैं वह अज़ाब के मुस्तहिक होते हैं 

अल्लाह तआला ने फ़रमायाः
और जो अल्लाह और उसके रसूल की नाफरमानी करें तो बेशक उनके लिये जहन्नम की आग है जिसमें हमेशा रहेंगे। उसी तरह गुनाहों के मुरतकिब लानत के मुस्तहिक होते हैं। 

अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमायाः
ख़बरदार ज़ालिमों पर अल्लाह की लानत है ।

अगर अंबियाए किराम गुनाह करें तो वह अज़ाब और लानत के मुस्तहिक होंगे हालांकि इजमाअे उम्मत है कि अंबियाए किराम अज़ाब या लानत के मुस्तहिक नहीं हो सकते। 


7. अंबियाए किराम लोगों को अल्लाह तआला की इताअत का हुक्म देते हैं अगर खुद उस पर अमल न करें तो उनपर सादिक आयेगा ।

लोगों को भलाई का हुक्म देते हो और अपनी जानों को भूलते हो हालांकि तुम किताब पढ़ते हो तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं?

जब एक आम नसीहत करने वाले की इस से मज़म्मत की जा सकती है तो अंबियाए किराम जो अज़ीम मरातिब के मालिक होते हैं उनसे यह कैसे मुमकिन है कि वह और लोगों को नसीहत करें और ख़ुद अमल न करें ।

हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम को कहाः
और मैं नहीं चाहता हूं कि जिस बात से तुम्हें मना करता हूं आप उसके ख़िलाफ़ करने लगूं, मैं तो जहां तक हो सके संवारना ही चाहता हूं।

8. अल्लाह तआला ने अंबियाए किराम की शान में ज़िक्र फ़रमायाः
बेशक वह भले कामों में जल्दी करते हैं ।

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ख़ैरात का मतलब यह होता है कि हर अच्छा काम करना और हर बुरे काम से बचना, इससे वाज़ेह हुआ कि अंबियाए किराम करते ही अच्छे काम हैं और बुरे कामों से बचते हैं लिहाजा उनसे गुनाह सर ज़द नहीं हो सकते ।

9. अल्लाह तआला ने अंबियाए किराम की शान में ज़िक्र फ़रमायाः
बेशक वह हमारे नज़दीक चुने हुए पसंदीदा हैं।

जब इस को मुतलक ज़िक्र किया उनकी किसी ख़सलत और आदत को अलग नहीं किया तो पता चला कि उन के तमाम काम ही अच्छे हैं कोई बुरा काम पाया जाये तो इस तरह कहा जाता है।

फलां शख़्स है तो बरगुज़ीदा और चुने हुए लोगों में से लेकिन अलबत्ता सिवाए फलां काम के कि वह इस काम में अच्छा नहीं ।

जब अंबियाए किराम के मुताल्लिक ऐसा कोई जुमला ज़िक्र नहीं किया गया तो इससे वाज़ेह होता है कि अंबियाए किराम के सब काम अच्छे ही अच्छे होते हैं उनसे कोई गुनाह नहीं होता और भी कई आयात उस पर दलालत कर रही हैं ।

10. अल्लाह तआला ने शैतान के क़ौल को ज़िक्र फ़रमाते हुए इरशाद फ़रमायाः 
तेरी इज्ज़त की क़सम ज़रूर मैं उन सब को गुमराह कर दूंगा मगर जो उनमें तेरे मुख़लिस बंदे हैं।

शैतान ने अपनी आजिज़ी का ज़िक्र कर दिया कि ऐ अल्लाह तेरे मुख़लिस बंदों पर मेरा दाव नहीं चलेगा।

" अल्लाह तआला ने इब्राहीम इस्हाक़ और याकूब अलैहिमुस्सलाम को अपना मुखलिस बंदा कहा, इरशाद बारी तआला है:

बेशक हमने उन्हें एक खरी बात से इम्तेयाज़ बख़्शा उस घर की याद है यानी हमने उन्हें अपना मुखलिस बनाया।

हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के मुताल्लिक रब तआला ने फ़रमायाः
बेशक वह हमारे मुखलिस बंदों से हैं ।

जब बाज़ अंबियाए किराम का मुख़लिस होना वाज़ेह हो गया और शैतान के अपने क़ौल के मुताबिक वह मुखलिस बंदों को गुमराह करने से आजिज़ है तो तमाम अंबियाएं किराम का हुक्म एक ही है क्योंकि इसका कोई भी कायल नहीं कि बाज़ अंबियाए किराम ( माअजल्लाह ) गुनाहगार हैं और बाज़ नहीं ।

11. और बेशक इबलीस ने उन्हें अपना गुमान सच कर दिखाया तो वह उसके पीछे हुए मगर एक गिरोह कि मुसलमान था ।

इस आयत करीमा से वाज़ेह हुआ कि ईमान वाले लोगों के एक गिरोह ने शैतान की ताबेदारी नहीं की जिन्होंने शैतान की ताबेदारी नहीं की वह गुनाहगार भी नहीं ।

अब देखना यह है कि यह गिरोह अंबियाए किराम का है या दूसरे लोग हैं? अगर अंबियाए किराम हैं तो यक़ीनन तमाम अंबियाए किराम का हुक्म एक ही है और अगर यह लोग अंबिया नहीं तो फिर भी वाज़ेह है कि अंबियाए किराम गुनाहगार नहीं हो सकते, क्योंकि अगर अंबियाए किराम गुनाहगार हों और दूसरे लोग गुनाहगार न हों तो जो नबी नहीं वह नबी से शान के लिहाज़ से बढ़ जायेगा, यह नहीं हो सकता क्योंकि तमाम उम्मत का इत्तिफ़ाक़ है कि नबी के दर्जे को कोई दूसरा नहीं पा सकता ।

12. अल्लाह तआला ने अपनी मखलूक की दो किस्में ब्यान की हैं एक के मुताल्लिक फ़रमायाः 
वह शैतान के गिरोह हैं ख़बरदार बेशक शैतान ही का गिरोह ख़सारे में है। 

दूसरी किस्म के मुताल्लिक फरमाया:
वह अल्लाह का गिरोह है ख़बरदार बेशक अल्लाह का गिरोह ही कामयाब है।

इसमें तो किसी किस्म का कोई शक नहीं कि शैतानी गिरोह तो वही होगा जो ऐसे अमल करेगा जिनको शैतान पसंद करता होगा, और शैतान के पसंदीदा गुनाह हैं। हर वह शख़्स जो अल्लाह तआला का नाफरमान होगा, गुनाहगार होगा वही शैतानी गिरोह में होगा। अगर ( माअज़ल्लाह ) अंबियाए किराम से भी गुनाह सर ज़द हों तो वह शैतानी गरोह में दाख़िल होंगे और ख़सारे में होंगे।

क्या कोई मुसलमान यह कह सकता है कि उम्मत के नेक व परहेज़गार लोग तो अल्लाह का गिरोह हों और कामयाब होने वाले हों और अंबियाए किराम शैतानी गिरोह में दाखिल होकर ख़सारे में हों? ऐसा कभी नहीं हो सकता किसी मुसलमान का ऐसा सोचना भी अपनी दुनिया और दीन को बर्बाद करना है।

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13. अंबियाए किराम फरिश्तों से अफ़ज़ल हैं इसलिये ज़रूरी है कि उनसे कोई गुनाह सर ज़द न हो सके क्योंकि फरिश्तों के मुताल्लिक अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

बात में उससे सबक़त नहीं करते और उस के हुक्म पर कारबंद होते हैं। इसी तरह फरिश्तों के मुताल्लिक और यह फरमायाः

और वह अल्लाह का हुक्म नहीं टालते और जो उन्हें हुक्म हो वही करते हैं ।

जब फ़रिश्ते अल्लाह के हुक्म के मुताबिक अमल करते हैं तो अल्लाह के हुक्म की ख़िलाफ़ वर्ज़ी नहीं करते तो यह कैसे हो सकता है कि अंबियाए किराम जो उनसे अफ़ज़ल हैं वह अल्लाह तआला के हुक्म के मुताबिक अमल न करें? और अल्लाह के हुक्म की ख़िलाफ़ वर्ज़ी करें? गुनाहगार तो नेकों के बराबर भी नहीं हो सकते, अफ़ज़ल होना तो दूर की बात है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः

क्या हम उन्हें जो ईमान लाये और अच्छे काम किये उन जैसा कर दें जो ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं या हम परहेज़गारों को शरीर बे हुक्मों के बराबर ठहरा दें।

14. नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक आराबी से ऊंटनी ख़रीदी और आपने उसे कीमत अदा कर दी उसने फिर आपसे कीमत का मुतालबा किया आपने फ़रमायाः कि कीमत तो मैंने अदा कर दी उसने आपसे गवाह तलब किया आपने ख़्याल किया मेरी गवाही कौन देगा उस वक़्त तो कोई मौजूद ही नहीं था। हज़रत खुज़ैमा ने कहा या रसूलल्लाह! मैं गवाही देता हूं कि आपने आराबी को ऊंटनी की कीमत अदा कर दी है। आपने जब उनसे पूछा तुम ने कैसे गवाही दे दी थी हालांकि तुम तो उस वक़्त मौजूद ही नहीं थे? उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! आप हमें आसमानों की ख़बर बताते हैं तो हम आपकी तस्दीक करते हैं, तो क्या इस ऊंटनी की कीमत अदा करने पर आपकी तसदीक न करें? यह कैसे हो सकता है ? नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया आइंदा खुज़ैमा जहां अकेले ही गवाही देंगे उनकी गवाही दो शख़्सों के बराबर समझी जायेगी ।

अगर ( माअज़ल्लाह ) अंबियाए किराम से गुनाह होते तो हज़रत खुज़ैमा कभी गवाही न देते बल्कि यह ख़्याल करते कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी ( माअज़ल्लाह ) हमारी तरह झूट बोल सकते हैं। (ख़्याल रहे कि बाज़ रिवायात में घोड़ा ख़रीदने का ज़िक्र है । )

15. बेशक मैं तुम्हें लोगों का इमाम बनाने वाला हूं।

यह अल्लाह तआला ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को फरमाया, इमाम वह है जिस की लोग इक़्तेदा करें और ताबेदारी करें अगर नबी से गुनाह वाक़ेय हों तो उन गुनाहों की इक़्तेदा और ताबेदारी भी लाज़िम होगी यह मुमकिन नहीं कि नबी गुनाहों से मना भी करें और गुनाह करके लोगों को अपने गुनाहों की इक्तेदा का भी हुक्म दें।

16. अल्लाह तआला ने इरशाद फरमायाः

यानी नबुव्वत और इमामत का वादा नेक और अल्लाह के कुर्ब के मुस्तहिक लोगों के लिये है ज़ालिमों के लिये नहीं, गुनाहगार कभी नबी नहीं बन सकेंगे, वाज़ेह तौर पर मालूम हुआ कि अंबियाए किराम गुनाह नहीं करते क्योंकि गुनाहगारों को मनसबे नबुव्वत मिलता ही नहीं । 

📗 तज़किरतुल अंबिया


आने वाली अगली पोस्ट : अहज़रत आदम व हव्वा अलैहिमस्सलाम का ज़मीन में तशरीफ लाना :

Related Question (FAQs)

कितने अंबिया इकराम का नाम क़ुरान में ज़िक्र के साथ आया है?

26 अंबिया इकराम का नाम क़ुरान में आया है ज़िक्र के साथ.

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📗 ( फतावा रज़वियह,जिल्द 6,सफह 61 )

अभी भी कितने अम्बिया इकराम ज़िंदा हैं?

अभी भी 4 अम्बिया इकराम ज़िंदा हैं, और उनके नाम यह है

  • 01. हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम
  • 02. हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम
  • 03. हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम
  • 04. हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम
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📗 ( तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 881 )

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26 अंबिया इकराम के कौन से नाम है जो क़ुरान में आये है?

ओ 26 नाम यहै,

  • 01. हज़रत आदम अलैहिस्सलाम
  • 02. हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम
  • 03. हज़रत नूह अलैहिस्सलाम
  • 04. हज़रत हूद अलैहिस्सलाम
  • 05. हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम
  • 06. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम
  • 07. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सला
  • 08. हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम
  • 09. हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम
  • 10. हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम
  • 11. हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम
  • 12. हज़रत ज़ुलक़िफ्ल अलैहिस्सलाम
  • 13. हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम
  • 14. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम
  • 15. हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम
  • 16. हज़रत अलयसअ अलैहिस्सलाम
  • 17. हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम
  • 18. हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम
  • 19. हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम
  • 20. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम
  • 21. हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम
  • 22. हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम 
  • 23. हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम
  • 24. हज़रत यहया अलैहिस्सलाम
  • 25. हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम
  • 26. हज़रत मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम

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📗( फतावा रज़वियह,जिल्द 6,सफह 61 )

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