Hazart Adam Alaihissalam Ki Aulad | आदम अलैहिस्सलाम की औलाद

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आदम अलैहिस्सलाम की औलाद 

Hazart Adam Alaihissalam Ki Aulad | आदम अलैहिस्सलाम की औलाद
Hazart Adam Alaihissalam Ki Aulad


Hazart Adam Alaihissalam Ki Aulad


हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की औलाद के हक़ में दुआः


इस वाक़िया के बाद आदम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि मौला मेरी औलाद बहुत कमज़ोर है और इबलीस का फरेब बहुत सख़्त, अगर तू उनकी इमदाद न करे तो वह इबलीस से कैसे. बच सकेंगे, हुक्मे इलाही आया ऐ आदम तुम्हारे और अहकाम थे आपकी औलाद के लिये और अहकाम होंगे हम हर इंसान के साथ एक फ़रिश्ता रखेंगे तब आपने खुश होकर शुक्र किया । 

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आदम अलैहिस्सलाम की औलाद :


हज़रत हव्वा बीस या चालीस मर्तबा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से हामिला हुई हर हमल में दो दो बच्चे पैदा हुए एक मुज़क्कर एक मुअन्नस | एक हमल के बच्चों का दूसरे हमल के बच्चों का ऐसा हुक्म था जैसा कि मुख़्तलिफ़ मां-बाप के बच्चों का होता है यानी पहले हमल के बच्चे का दूसरे की बच्ची से निकाह होता इसी तरह दूसरे हमल के लड़के का पहले हमल की लड़की से निकाह होता ।

तंबीह : हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दो बच्चे हर हमल से हुए सिवाए हज़रत शीस अलैहिस्सलाम के ।

हज़रत हव्वा ने हज़रत शीस को सिर्फ अकेला ही पेश किया उनके साथ जुड़वां कोई बच्ची नहीं थी। यह सिर्फ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इज्ज़त व तकरीम के लिये मालिकुल मुल्क ने एक बच्चे से ही हामला किया क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नूर आदम अलैहिस्सलाम से मुन्तकिल होकर हज़रत शीस अलैहिस्सलाम के पास आ गया। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उन्हें वसीयत की कि यह नूरे मुबारक, पाक औरत की तरफ मुन्तकिल करना है। फिर हज़रत शीस अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को यही वसीयत की यह

सिलसिला हज़रत अब्दुल मुत्तलिब तक चलता रहा कि हर शख़्स ने अपने बेटे को इस नूर पाक बतन की तरफ़ मुन्तकिल करने की वसीयत की ।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की वफ़ात के वक़्त आपकी औलाद और औलाद की औलाद वग़ैरह चालीस हज़ार से ज़्यादा हो गई थी । तफ़सीर सावी और जुमल वगैरह में एक लाख पहुंच जाने का ज़िक्र मिलता है ।


हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दो बेटों का झगड़ाः


हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की सुल्बी औलाद से काबील और हाबील थे। काबील बड़ा था हाबील छोटा था। क़ाबील खेती बाड़ी करता था और हाबील बकरियां चराता था । काबील के साथ पैदा होने वाली लड़की का नाम अक़लीमा था जो बहुत ज़्यादा हसीन व जमील थी और हाबिल के साथ पैदा होने वाली लड़की लिबवा खूबसूरती में कुछ कम थी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शरीयत के क़ानून के मुताबिक काबील के साथ पैदा होने वाली लड़की का निकाह हाबील से और हाबील के साथ पैदा होने वाली लड़की का निकाह काबील से होना था, लेकिन क़ाबील ने ऐसा करने से इंकार कर दिया उसने कहा कि मेरे साथ पैदा होने वाली लड़की का निकाह ही मेरे साथ होगा।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने दोनों को न्याज़ का मश्वरा दिया :

जब क़ाबील ने ज़िद और हटधर्मी शुरू कर दी तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम दोनों अल्लाह की राह में कोई न कोई चीज़ पेश करो, जो सच्चा होगा उसकी न्याज़ व सदका क़बूल हो जायेगा और जो झूटा होगा उसकी तरफ से पेश किया गया सदका क़बूल नहीं होगा उस वक़्त कबूलियत की यह अलामत थी कि जिसका सदका क़बूल हो जाता उसे कुदरती तौर पर आने वाली आग खा जाती और

जो क़बूल नहीं होता था उसे आग नहीं खाती थी। क़ाबील ने एक अंबार गंदुम और हाबील ने एक बकरी या एक दुम्बा रब तआला की राह में पेश किया दोनों ने यह कह कर न्याज़ पेश की कि ऐ अल्लाह जो अक़लीमा का ज़्यादा हक़दार है उसकी कुरबानी क़बूल फरमा ।

आसमानी आग ने हाबील के सदके को खाकर क़बूलियत बख़्श दी और काबील के सदक़ा को आग ने न खाकर रद्द कर दिया। काबील के दिल में हसद बुग्ज़ एनाद भड़क उठा उसने हाबील को क़त्ल करने की धमकी दे दी । अल्लाह तआला ने इस वाकये को इस तरह ज़िक्र फ़रमायाः

और इन्हें पढ़कर सुनाओ आदम के बेटों की सच्ची ख़बर जब दोनों ने एक एक न्याज़ पेश की तो एक की क़बूल हुई, बोला क़सम है मैं तुझे क़त्ल कर दूंगा । हाबील ने कहा अल्लाह उसी से क़बूल करता है जिसे डर है बेशक अगर तू अपना हाथ मुझ पर बढ़ायेगा कि मुझे क़त्ल करे तो मैं अपना हाथ तुझ पर न बढ़ाऊंगा कि तुझे क़त्ल करूं। मैं अल्लाह से डरता हूं जो मालिक है सारे जहान का, मैं तो यह चाहता हूं कि मेरा और तेरा गुनाह दोनों तेरे ही पल्ले पड़ें तू दोज़ख़ी हो जाए और बे इंसाफ़ों की यही सज़ा है।

इस वाकये को ज़िक्र करने का यह मतलब था कि हसद की बुराई मालूम हो और नबी करीम की सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हसद करने वालों को सबक हासिल हो और क़यामत तक लोग हसद को बुरा समझें ।

हाबील हक़ पर थे उनके तक़वा के पेशे नज़र उनका सदका क़बूल हो गया उन्होंने कहा मैं चाहता हूं मेरा और तुम्हारा गुनाह तुम्हारे ही पल्ले पड़े, इसका मक़सद यह था कि तुम ने अपने बाप की नाफरमानी की वह गुनाह भी तुम्हारे ज़िम्मे है और अगर मुझे क़त्ल करना चाहो तो कर लो, मेरे कत्ल का गुनाह भी तुम्हारे ज़िम्मे ही होगा ।

आख़िरकार काबील ने हाबील को क़त्ल कर दिया:


तो उसके नफ़्स ने उसे भाई के क़त्ल का चाव दिलाया तो उसे क़त्ल कर दिया तो रह गया नुक़सान में ।

आदम अलैहिस्सलाम मक्का गये हुए थे उसने उनके पीछे अपने भाई को क़त्ल कर दिया यह रुए ज़मीन पर पहला क़त्ल था इसलिये काबील जानता नहीं था कि वह अपने भाई को कैसे क़त्ल करे तो शैतान ने उसके सामने एक परिन्दे का सर पत्थर पर रखकर दूसरे पत्थर से फोड़ दिया। काबील को पता चल गया कि इस तरह क़त्ल करना है हाबील चूंकि बकरियां चराता थे एक दरख़्त के नीचे सोया हुआ था उसके सर पर पत्थर मारकर उन्हें क़त्ल कर दिया उस वक़्त हाबील की उम्र बीस साल थी

क़त्ल के बाद काबील की दुनिया में ज़िल्लतः


अब्दुर्रहमान बिन फ़ज़ाला से मरवी है कि जब क़ाबील ने हाबील को क़त्ल कर दिया तो उस की अक़्ल ज़ायल हो गई, दिल में समझने की सलाहियत ख़त्म हो गई इसी तरह पागल ही रहा यहां तक कि मर गया । क़त्ल करने से पहले रंग उसका सफेद था और क़त्ल के बाद उसका तमाम जिस्म काला हो गया, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने मक्का मुकर्रमा की सर ज़मीन से वापस होने पर काबील से पूछा तुम्हारा भाई कहां है? उसने कहा मैं कोई उसका ज़िम्मेदार तो नहीं था आपने फ़रमाया तूने उसे क़त्ल कर दिया है इसी लिये तेरा जिस्म स्याह हो चुका है। 

काबील का उख़रवी अज़ाब :


हज़रत इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो शख़्स भी जुल्मन क़त्ल होगा उसके क़त्ल का अज़ाब आदम अलैहिस्सलाम के बेटे पर भी होगा क्योंकि सब से पहले उसी ने कत्ल की शुरूआत की। यानी जिस तरह क़त्ल करने वाले को क़त्ल का अज़ाब होगा उसी तरह क़त्ल की इब्तेदा करने वाले को भी अज़ाब होता रहेगा।

बेटे के क़त्ल पर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का ग़म :


हज़रत आदम अलैहिस्सलाम बेटे के क़त्ल पर इतने ज्यादा ग़मज़दा हुए कि एक सौ साल आप मुस्कुराए नहीं। एक सौ साल के बाद आप को एक बेटे की बशारत दी गई यानी आप को कहा गया:

"अल्लाह आपको ज़िन्दा रखे अल्लाह तआला आपको एक और बेटा अता फरमाने वाला है तो आप मुस्कुराए । "

अलबत्ता हज़रत अल्लामा मुहीउस सुन्ना रहमतुल्लाह अलैहि ने ज़िक्र फरमाया कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हाबील के क़त्ल होने के पचास साल बाद हज़रत शीस अलैहिस्सलाम अता हुए और आदम अलैहिस्सलाम के वली अहद बने ।

ख़्याल रहे तफ़सीर कशाफ़ में यह ज़िक्र है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे के क़त्ल होने के बाद बतौर मरसिया अशआर कहे लेकिन तफ़सीर कबीर में अल्लामा राज़ी रहमतुल्लाह अलैहि ने और रूहुल मआनी में अल्लामा आलूसी रहमतुल्लाह अलैहि ने उसे रद्द किया कि यह ग़लत और झूट है तमाम अंबियाए किराम ने अशआर नहीं कहे । 

कत्ल के बाद काबील की परेशानी :


क़ाबील ने जब हाबील को क़त्ल कर दिया तो अब यह नहीं जानता था कि क्या करे? इसी तरह छोड़ देने पर उसे यह ख़तरा था कि दरिन्दे खा जायेंगे तो वह अपने भाई की लाश को बारी में डालकर फिरता रहा यहां तक कि लाश बदबूदार हो गयी उसे छुपाने का कोई तरीका मालूम नहीं हो रहा था कि मैं क्या करूं? बहुत ही परेशान था। ख़्याल रहे कुरआन पाक में इस मक़ाम पर लाश के लिये लफ़्ज़ "सवात इस्तेमाल हुआ जिसका असली मायने नंगेज़ है यानी जिस्म का वह हिस्सा जो ज़ाहिर न किया जाये क्योंकि वह भी क़त्ल के बाद लाश छुपाये फिरता था इसलिये उसे सवात कहा गया है ।

लाश छुपाने में कव्वे की मुआवनत :


इरशाद खुदांवदी है:

तो अल्लाह ने एक कव्वा भेजा जो ज़मीन कुरेदने लगा कि उसे दिखाये क्योंकर अपने भाई की लाश छुपाये बोला, हाए ख़राबी में इस कव्वे जैसा भी न हो सका कि मैं अपने भाई की लाश छिपाता, तो पछताता रह गया।

अल्लाह तआला कितना करीम है कि क़ाबील मुजरिम होने के बावजूद जब उस परेशानी में फंसा हुआ था कि अपने भाई की लाश से क्या करे? दुनिया में पहली मौत थी कब्र खोदने दफ़न करने से वह बे ख़बर था तो अल्लाह तआला ने उसकी मुश्किल हल करने के लिये उसका - मददगार कव्वे को बनाकर भेजा।

कव्वे ने कैसे मुआवनत की?


अल्लामा राज़ी रहमतुल्लाह अलैहि ने इस मक़ाम पर तीन वजह ब्यान की हैं अगरचे मशहूर पहली बात ही है।

1. अल्लाह तआला ने दो कव्वे भेजे वह दोनों लड़े एक ने दूसरे को क़त्ल कर दिया और अपनी चोंच और पंजों से ज़मीन को कुरेदा और मुर्दा कव्वे की लाश को उस गड्ढे में डालकर. ऊपर मिट्टी डाल दी इससे काबील को भी पता चल गया कि मुझे ऐसा ही करना है और बहुत पशेमान हुआ कि मैं उस कव्वे से भी ज़्यादा आजिज़ हो गया इतना काम भी न कर सका।

2. काबील ने तंग आकर हाबील की लाश को इसी तरह फेंक दिया अल्लाह तआला ने कव्वे भेजे जिन्होंने मिट्टी खोद खोदकर उस लाश पर डाली और उसे छिपा दिया यह देखकर काबील को बहुत अफ़सोस हुआ कि हाबील को अल्लाह ने कितनी इज्ज़त बख़्शी है और मैं कितना ज़लील हो गया ।

3. कव्वे की आम आदत यह है कि कोई खाने की चीज़ उसके पास हो तो उसे दूसरे वक़्त के लिये ज़मीन में दबा देता है। उसने जब किसी चीज़ को ज़मीन में छुपा दिया तो क़ाबील को पता चल गया कि मुझे अपने भाई की लाश को ऐसे छिपाना है और साथ साथ कव्वे से कम इल्म रखने की वजह से बहुत पशेमान भी हुआ कि मुझ से तो कव्वा ही अच्छा है जिसे चीज़ों को छुपाना आता है।

तंबीह : काबील को नेदामत अल्लाह तआला के ख़ौफ़ की वजह से नहीं थी और न ही वह तायब हो रहा था बल्कि उसे नेदामत इस पर हुई कि वह भाई की लाश को उठाये फिरता रहा और कव्वे से भी कम अक़्ल रहा उसे दफ़न न कर सका और इस वजह से नादिम हो रहा था कि वह भाई को क़त्ल करने के बावजूद अपने मक़ासिद में कामयाब नहीं हुआ था क्योंकि उससे मां-बाप बहन भाई सब नाराज़ हो गये थे।

और एक वजह यह भी थी कि जब उसने देखा कि एक कव्वे ने बड़ी मेहरबानी से दूसरे की लाश को दफ़न किया तो यह उस पर नादिम हुआ था कि मुझे तो अपने भाई पर इतना रहम भी नहीं आ सका जितना कव्वे को है वाज़ेह हुआ कि उसने कोई तौबा नहीं की और नेदामत उसे सिर्फ अपनी हिमाकत पर थी ।

📗 तज़किरतुल अंबिया

 आने वाली अगली पोस्ट : हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की वफ़ात :

Related Question (FAQs)

क़ाबिल अपने भाई हाबिल की लाश को कितने दिन लेकर फिरता रहा?

क़ाबील ने हाबील को क़त्ल तो कर दिया मगर यह न जाना कि इस लाश का क्या किया जाए. इसलिये यह लाश एक थैले में डाल कर चालीस दिन अपने कन्धे पर लिये फिरा.

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📗 ( तफ़सीरे नईमी )

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क़ाबिल ने अपने भाई हाबिल को किस दिन कत्ल किया?

काबिल ने अपने भाई  हाबिल को मंगल के दिन कत्ल किया.

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📗 ( तफ़सीरे नईमी )

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