हज़रत आदम व हव्वा से क्या भूल हुई?
हज़रत आदम व हव्वा अलैहिमस्सलाम को दरख़्त से मना करने में हिकमत
अगर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत में न होते बल्कि पहले ही ज़मीन पर होते तो... और तुम दोनों उस दरख़्त के क़रीब न जाओ ।
कहने की न ज़रूरत दरपेश आती और न ही आप से भूल वाक़ेय होती । लेकिन आप तो जन्नत में थे और आपका ज़मीन में रहना और ज़मीन में ही अल्लाह का ख़लीफ़ा बनना खुद रब तआला की मुराद थी आप की तख़लीक से पहले ही अल्लाह तआला ने फ़रमा दिया था। बेशक मैं ज़मीन में ख़लीफा बनाने वाला हूं।
पूरा हो जाये, अदना तआम्मुल से यह बात समझ में आ सकती है कि अल्लाह तआला ने अपने मंशा और मुराद को मुतहक्किक फरमाने के लिये यह सब हकीमाना अस्बाब पैदा फ़रमाये ।
आदम अलैहिस्सलाम से भूल हुई
और उस दरख़्त के क़रीब न जाना कि हद से बढ़ने वालों में से हो जाओगे। आदम व हव्वा अलैहिमस्सलाम दोनों उस दरख़्त के क़रीब गये और अल्लाह तआला की मुमानेअत के बावजूद उन्होंने उसे खा लिया ऐसी सूरत में आयते करीमा का बज़ाहिर मफ़ाद यही होगा कि आदम व हव्वा अलैहिमस्सलाम (मअज़ल्लाह) दोनों ज़ालिम हो गये मगर याद रहे कि आदम अलैहिस्सलाम अल्लाह की ज़मीन पर अल्लाह तआला के पहले ख़लीफा और उसके नबी हुए। अल्लाह का नबी और अल्लाह का ख़लीफा कभी ज़ालिम नहीं हो सकता। अगर कोई बंदा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को ज़ालिम कहेगा तो वह खुद ज़ालिम व काफिर क़रार पायेगा।
जुल्म के मायने : यानी किसी चीज़ को उस की असल जगह की बजाए किसी दूसरी जगह रख देना ।
कुरआन करीम में शिर्क के लिये भी लफ़्ज़ जुल्म वारिद है, हक़ तलफ़ी और हाकिम के फ़रमाने हक़ की नाफरमानी को भी जुल्म कहते हैं । बल्कि हर मासियत व गुनाह जुल्म है। अल्लाह तआला बंदे को जिस काम का हुक्म दे उसकी ख़िलाफ़ वर्ज़ी यक़ीनन गुनाह है लेकिन उसका क़ानून यह है कि वह बंदों को उसी काम का हुक्म देता है जो बंदे के इख़्तेयार में हो देखिये कुरआन करीम ने फ़रमायाः
यानी अल्लाह तआला किसी की ताक़त व इख़्तेयार से बाहर उसे कोई हुक्म नहीं देता। ज़ाहिर है कि भूल कर किसी काम का करना या न करना बंदे के इख़्तेयार में नहीं, ऐसी सूरत में व ला तक रबा हाज़िहिश श ज र त की नहीं के यह मायने नहीं हो सकते कि तुम भूल कर भी उस दरख़्त के क़रीब न जाना वरना तुम दोनों ज़ालिमों में से हो जाओगे। अब इस बात का फ़ैसला कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम क़सदन उस दरख़्त के करीब गये
या भूल कर बिला क़सद ? खुद कुरआन मजीद से ही सुन लीजिये अल्लाह तआला ने फ़रमायाः और बेशक हमने उससे पहले आदम अलैहिस्सलाम से दरख़्त के करीब न जाने का अहद लिया तो वह भूल गये और हमने उनका कोई क़सद न पाया।
साबित हुआ कि आदम अलैहिस्सलाम से किसी किस्म का कोई जुल्म सर ज़द नहीं हुआ न उन्होंने कोई शिर्क किया, न उनसे कोई हक़ तलफ़ी हुई न उनसे किसी मासियत और गुनाह का सुदूर हुआ। जैसे रोज़ेदार का रोज़े की हालत में भूल कर खाना पीना गुनाह नहीं उसी तरह आदम अलैहिस्सलाम का उस दरख़्त से भूल कर खा लेना भी गुनाह नहीं । यकीनन वह गुनाहों से पाक और नबी होने की वजह से मासूम हैं। शैतान उनसे जिस ज़ाहिरी लगज़िश के सादिर होने का सबब बना वह हकीकतन मासियत नहीं बल्कि उसके साथ अल्लाह तआला की हिकमतें मुताल्लिक हैं इस तरह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम रब्बाना ज़लमना अनफुसना कहना भी उनके जालिम होने की दलील नहीं बल्कि उनके कमाले अबदियत और रब्बे करीम की बारगाह में इंतेहाई तवाजुअ और इंकिसारी पर मबनी है।
इससे मालूम हुआ कि आदम अलैहिस्सलाम अपने महबूब और महबूब की मुराद को नहीं भूले यानी अल्लाह तआला और उसकी मुराद जो थी कि आप ज़मीन में मेरे ख़लीफा होंगे उससे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से भूल नहीं वाक़ेय हुई बल्कि अल्लाह तआला की मर्जी के मुताबिक काम हुआ, अलबत्ता भूल उनके मासिवा चीज़ में हुई जो अल्लाह तआला की हिकमत का तकाज़ा था कि एक दरख़्त के क़रीब जाने से रोका उसमें भूल वाकेय हुई जो ज़मीन में आने का सबब बनी।
इस मुक़ाम पर यह शुबह सही न होगा कि अल्लाह तआला हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को इस भूल के बगैर ज़मीन पर लाने पर क़ादिर था बेशक उसकी कुदरत हक़ है लेकिन उसने इज़हारे कुदरत को खुद ही हकीमाना अस्बाब के साथ मरबूत फ़रमाया है। आदम अलैहिस्सलाम का निसयान उन ही अस्बाब में शामिल है, अल्लाह तआला के क़ादिर होने के साथ साथ उसका हकीम होना भी बरहक़ है और हकीम की शान नहीं कि हिकमत के ख़िलाफ़ कोई काम करे, हिकमत की रियायत से कुदरत की नफ़ी नहीं होती। आदम अलैहिस्सलाम की उस ज़ाहिरी लग़ज़िश को हक़ीक़तन मासियत न समझा जाये और इस बात पर गौर किया जाये कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जन्नत में ठहराकर एक ख़ास दरख़्त के करीब जाने से मना फ़रमा दिया और शैतान को इख़्तेयार दे दिया कि वह इस मुमानेअत की ख़िलाफ़ वर्ज़ी में आदम अलैहिस्सलाम की लगज़िश का सबब बन जाये और लग़ज़िश के सादिर होने के बाद आदम अलैहिस्सलाम का ज़मीन में ख़लीफ़तुल्लाह होना जो शाए इयज़दी था हकीमाना तौर पर पूरा हो जाये, अदना तआम्मुल से यह बात समझ में आ सकती है कि अल्लाह तआला ने अपने मंशा और मुराद को मुतहक्किक फरमाने के लिये यह सब हकीमाना अस्बाब पैदा फ़रमाये ।
📗 तज़किरतुल अंबिया
Question Answer
बाबा आदम के कितने बेटे थे?तमाम औलाद की तअदाद चालीस (40).ये सब बच्चे बीस (20) बार में पैदा हुए थे. सबसे बड़ा क़ाबील और उसकी बहन इक्लीमिया और सबसे छोटा अब्दुल मुग़ीस और उसकी बहन अमतुल मुग़ीस.
(alert-passed)📗( तोहफ़्तुल वाइज़ीन )
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हज़रत आदम अलैहिमस्सलाम को किस दरख़्त के पास जानेसे मना किया था?हज़रत आदम अलैहिमस्सलाम को गंदुम के दरख्त के पास जाने से मना किया था
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