आदम अलैहिस्सलाम को नाम सिखाए, फ़रिश्तों को नहीं, क्या वजह ?
अलफाज़ के ज़रिये मानी का इल्म हासिल होता है जिसके पढ़ाने वाले को मोल्लिम कहते हैं और पढ़ने वाले को मुतअल्लिम । सिर्फ मुअल्लिम के पढ़ाने से मुतअल्लिम को इल्म हासिल होना ज़रूरी नहीं बल्कि मुतअल्लिम में इस्तेदाद का पाया जाना ज़रूरी है यानी मुतअल्लिम में समझने की सलाहियत हो तो मुअल्लिम की तालीम का उस पर असर होगा, यह रोज़ मर्रा हम मुशाहदा करते हैं। एक ही क्लास के लड़कों को उस्ताद पढ़ाता है सब को यकसां पढ़ा रहा होता है लेकिन फिर कोई लायक होता है और कोई नालायक अल्लाह तआला को भी जब आदम अलैहिस्सलाम को मंसबे ख़िलाफ़त अता करना था तो आप को पहले तमाम अशिया और उनकी कैफ़ियात और उनके नामों को समझने की इस्तेदाद भी अता फ़रमाई लेकिन फ़रिश्तों को हर हर चीज़ के हालात की तफ़ासील को समझने की इस्तेदाद अता नहीं हुई थी क्योंकि उनको मनसबे ख़िलाफ़त पर फायज़ करना मकसूद ही नहीं था ।
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आदम अलैहिस्सलाम को इल्म कैसे अता किया गया था?
आप को तमाम चीज़ों का इल्म दिया गया यानी अल्लाह तआला ने अपनी तमाम मखलूकात में से एक एक जिन्स आपको दिखा दी और उसका नाम बताया, मसलन घोड़ा दिखाकर बता दिया गया कि इसे घोड़ा कहते हैं और ऊंट दिखाकर बता दिया गया कि इसे ऊंट कहते हैं इसी तरह एक एक चीज़ दिखा कर उसके नाम बता दिये गये।
आदम अलैहिस्सलाम को यह ख़सूसियत हासिल थी कि आपको तमाम चीज़ों के नाम हर ज़बान में बता दिये गये थे और वही जबानें आपकी औलाद में मुतफ़र्रिक तौर पर पाई जाती हैं यानी एक चीज़ का नाम आपने हर हर जबान में बताया जो ज़बानें भी ईजाद होनी थीं आपको उनका इल्म पहले से ही अता कर दिया गया था ।
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फ़ायदा : जब आदम अलैहिस्सलाम को तमाम चीज़ों का इल्म दिया गया हर चीज़ के नाम हर ज़बान में सिखाये गये तो सय्यदुल अंबिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इल्म का मक़ाम क्या होगा? आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी रहमतुल्लाहि अलैहि ने इस तरह तहरीर फ्रमायाः
रहमान ने अपने महबूब को कुरआन सिखाया इंसानियत की जान मुहम्मद को पैदा किया, माकाना व मायकून का ब्यान उन्हें सिखाया।
आला हज़रत ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इंसानियत की जान कहा । हज़रत अल्लामा आलूसी ने तफ़सीर में तहरीर फ़रमायाः
तमाम जहान एक जिस्म है और नबी करीम उसकी रूह हैं जिस्म का क़याम बग़ैर रूह के मुमकिन नहीं इससे पता चला कि हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कायनात की जान हैं।
और आला हज़रत के तर्जमा से यह वाज़ेह हुआ कि इल्मुल ब्यान का मतलब यह है कि हबीब पाक को इल्म अता किया गया, इस पर अल्लामा करतबी की अलजामियउल अहकामिल ब्यान की तफ़सीर मुलाहज़ा हो ।
यानी इल्मुल ब्यान में ज़मीर मंसूब का मरजअ इंसान है और इससे मुराद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं।
और इल्मुल ब्यान में ब्यान से मुराद या तो हलाल व हराम का इल्म और गुमराही से हिदायत देना और या जिस तरह ब्यान किया गया है कि ब्यान से मुराद माकाना व मायकून का इल्म है क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अव्वलीन व आख़रीन और क़यामत का ज़िक्र फ़रमा दिया है यानी आपने सभी गुज़रे हुए और आने वाले और वाक्याते क़यामत से मुत्तला फरमा दिया तो आपको माकाना व मायकून का इल्म हासिल है।
मैंने उर्दू तराजिमे कुरआनी का तकाबुली जायज़ा पेश करते हुए अपनी किताब में बहुत सी तफ़ासीर की इबारात नक़ल करके वाज़ेह किया कि सारे तराजिम में से यहां आला हज़रत का तर्जमा ही बाकमाल है ।
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इल्म के फ़ज़ायले अलिया व नक्लिया :
तफ़सीर कबीर और अज़ीज़ी के हवाले से इल्म के फ़ज़ायल पर मुख़्तसर बहस पेशे ख़िदमत है।
फकीह अबुल लैस समर कंदी रहमुतल्लाहि अलैहि ने फ़रमाया कि आलिम कि सोहबत में हाजिर होने में सात फायदे हैं ख़्वाह उससे इल्म हासिल करे या न करे। हैं
1. वह शख़्स तालिबे इल्मों के जुमरे में शुमार किया जाता है और उनका सवाब पाता है।
2. जब तक उस मजलिस में बैठा रहेगा गुनाहों से बचता रहेगा।
3. जिस वक़्त यह अपने घर से तलबे इल्म की नीयत से निकलता है हर क़दम पर नेकी पाता है।
4. इल्म के हल्के में रहमते इलाही नाज़िल होती है जिस में यह भी शरीक हो जाता है।
5. इल्म का जिक्र सुनता है जो कि इबादत है।
6. वहां जब कोई मुश्किल मसला सुनता है जो उसकी समझ में नहीं आता और उसका दिल तंग होता है तो हक़ तआला के नज़दीक मुनकसिरुल कुलूब (दिल टूटा हुआ जो रहमत का मुस्तहिक होता है) में शुमार किया जाता है।
7. उसके दिल में इल्म की इज़्ज़त और जहालत से नफरत पैदा हो जाती है।
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि इल्मे दीन माल पर सात वजह से अफ़ज़ल है:
1. इल्म पैग़म्बरों की मीरास और माल फ़िरऔन हामान शद्दाद और नमरूद की ।
2. माल खर्च करने से कम होता है मगर इल्म बढ़ता है।
3. माल की हिफ़ाज़त इंसान को करनी पड़ती है लेकिन इल्म खुद इंसान की हिफाज़त करता है।
4. मरने के बाद माल तो दुनिया में रह जाता है और इल्मे दीन कब्र में साथ होता है।
5. माल मोमिन और काफ़िर सब को मिल जाता है लेकिन दीन का नफ़अ (यानी क़ब्र व हश्र में कामयाबी) सिर्फ ईमानदार को ही हासिल होता है।
6. कोई शख़्स भी आलिम से बे परवा नहीं लेकिन बहुत से लोगों को मालदारों की ज़रूरत नहीं।
7. इल्म से पुल सिरात पर गुज़रने की कुव्वत हासिल होगी और माल से कमज़ोरी ।
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सात पैग़म्बरों को इल्म की वजह से बहुत बड़े फायदे हासिल हुए :
1. हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को इल्म की वजह से फ़रिश्तों पर बुजुर्गी दी गई और फ़रिश्तों को उनके सामने सज्दा करने का हुक्म दिया गया।
2. हज़रत ख़िज अलैहिस्सलाम उनके मुताल्लिक अहले इल्म का इख़्तेलाफ़ है कि यह नबी हैं या वली...... के इल्म की वजह से उनकी और मूसा अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात हुई और कुछ अशिया के ज़ाहिर व बातिन
3. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम इल्म की वजह से ख़्वाब की ताबीर ब्यान करने पर कैदखाने से निकल कर शाही दरबार में पहुंच कर वज़ीर ख़ज़ाना और तमाम बादशाही कामों के मुदब्बिर मुर्कार हो गये ।
4. हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को इल्म की वजह से बिलक़ीस जैसी मल्का बहैसियत ज़ौजा मिली और उसे भी आपके इल्म की वजह से ईमान नसीब हुआ ।
5. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को इल्म की वजह से मनसबे नबुव्वत के साथ साथ बादशाही भी हासिल रही ।
6. ईसा अलैहिस्सलाम ने अपनी वालदा हज़रत मरयम की तोहमत को इल्म की वजह से दूर फ्रमाया ।
7. हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तमाम कायनात से ज़्यादा उलूम अता फ़रमाकर ख़िलाफ़ते इलाहया और शफाअते कुबरा के दर्जा रफ़ीया पर मुतमक्किन फ़रमाया ।
कुरआन पाक में सात चीज़ों के मुताल्लिक ज़िक्र है कि वह एक दूसरे के बराबर नहीं:
1. आलिम ! और जाहिल बराबर नहीं ।
2. ख़बीस और तैय्यब यानी नापाक और पाक बराबर नहीं।
3. दोज़ख़ी और जन्नती बराबर नहीं ।
4. अंधा और आंख वाला यानी इल्म और ईमान वाला और उनसे ख़ाली बराबर नहीं ।
5. जुलमत और नूर यानी इल्म और ईमान की नूरानियत और उनसे खाली होने की वजह से हासिल होने वाली तारीकी बराबर नहीं ।
6. सर्दी और गर्मी बराबर नहीं ।
7. ज़िन्दे और मुर्दे बराबर नहीं ।
हज़रत अली मुर्तज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि दुनिया चार शख़्सों से कायम है:
1. आलिम बा अमल से यानी इल्मे दीन के हासिल करने के बाद उसके आमाल भी अहकामे दीनिया के मुताबिक हों ।
2. ऐसे जाहिल लोगों से जो उलेमा से मुहब्बत रखते हों यक़ीनन उलेमा की सोहबत की वजह से उन्हें नेकी के कामों की रग़बत हासिल होगी और उलूमें दीनिया के मसायल से कुछ न कुछ ज़रूर हासिल होंगे।
3. सखावत करने वाले मालदारों से यानी मालदार जो अल्लाह तआला की राह में माल खर्च करता है वह भी बुलंद मर्तबा रखता है जो निज़ामे दुनिया के क़ायम रहने का सबब है।
4. और ग़रीब लोग जिन के पास माल तो नहीं लेकिन वह थोड़े माल और मेहनत व मशक्कत पर सब्र करने वाले हों यानी साबिर फ़क़ीर के दम से भी दुनिया कायम है।
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अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमायाः
बेशक अल्लाह के बंदों में से अल्लाह तआला से डरने वाले उलेमा ही हैं। इस आयत में जब लफ़्ज़ अल्लाह पर पेश ( यानी उर्दू का एराब जिसे लगाने से ऊ की आवाज़ निकलती है) हो और लफ़्ज़ उलेमा पर ज़बर हो तो मायने होगा कि अल्लाह तआला अपने बंदों में से उलेमा को इज्ज़त व वकार अता फरमाता है।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जब इल्मे दीन पढ़ाने वाला शख़्स फ़ौत होता है तो उस पर फ़िज़ा से परिन्दे ज़मीन के तमाम जानवर, दरियाओं में रहने वाली मछलियां रोती हैं ।
हज़रत आमिर जहनी रज़ियल्लाहु अन्हु एक हदीस ब्यान फ़रमाते हैं कि : क़यामत के दिन इल्मे दीन पढ़ने वाले तालिबे इल्म की स्याही और शहीद के ख़ून को लाया जायेगा। किसी एक को दूसरे पर फ़ज़ीलत हासिल नहीं होगी।
हज़रत मुसअब बिन जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने बेटे को कहाः
ऐ बेटे इल्म हासिल करो अगर तुम्हारे पास माल भी हुआ तो इल्म तुम्हारा जमाल होगा और अगर तुम्हारे पास कोई माल न हुआ तो इल्म ही तुम्हारा माल होगा।
नोट : अल्लामा इमाम राज़ी रहमतुल्लाहि अलैहि ने फ़ज़ीलते इल्म में इस मक़ाम पर बहुत तवील बहस की है मुख़्तसर तौर पर कुछ ज़िक्र किया गया है।
📗 तज़किरतुल अंबिया