शैतान, डेविल, इबलीस की असल क्या है?
इबलीस ( Shaitan, devil ) की असल क्या है?
कुछ हज़रात इस तरफ हैं कि इबलीस फ़रिश्तों से एलाहदा है क्योंकि फ़रिश्ते नूर से पैदा किये गये हैं और यह नार ( आग ) से । अल्लाह तआला ने फ़रमायाः इबलीस जिन्नों से था उसने अपने रब के हुक्म की नाफरमानी की।(alert-passed)
सवाल यह होता है कि उसे सज्दा का हुक्म कैसे था? हालांकि जाहिर तौर पर तो हुक्म सिर्फ फ़रिश्तों को है। तो इसका जवाब उन हज़रात की तरफ से यह दिया जाता है कि यह कसरते इबादत की वजह से फ़रिश्तों ही में दाख़िल था और मलायका वाले अहकाम ही उस पर जारी होते थे। यानी तग़लीबन उस पर हुक्म जारी हुआ जैसे सरदारों को हुक्म दिया जाये तो उनके मातेहत भी इस हुक्म में दाखिल होते हैं। लेकिन कुछ मुहक़्केकीन यानी अल्लामा बेग़वी वाहिदी, काजी बैज़ावी, अल्लामा आलूसी और अल्लामा राज़ी इस तरफ हैं कि यह फ़रिश्तों से ही था । अल्लामा आलूसी फ़रमाते हैं:
इबलीस को अगरचे रब तआला ने जिन्न कहा। हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की रिवायत में भी उसे जिन्न कहा गया लेकिन जिन्न कहने से उसके फ़रिश्ता होने में कोई फर्क नहीं पड़ता। उनमें कोई मनाफ़ात नहीं इसलिये कि जिन्न कभी तो फ़रिश्तों के मद्दे मुक़ाबिल एलाहदा मखलूक को भी कहते हैं और कभी फ़रिश्तों की एक किस्म को भी जिन्न कहा जाता है।
फ़रिश्तों को जिन्न क्यों कहा गया है?
अल्लामा आलूसी रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं:इसलिये कि वह लोगों की नज़रों से पोशीदा होते हैं छुपी हुई चीज़ों को जिन्न कहा जाता है इसलिये फ़रिश्तों को भी जिन्न कह दिया।(alert-passed)
इबलीस के आग से पैदा होने और फ़रिश्तों के नूर से पैदा होने में भी कोई ज़रर नहीं और उसके फ़रिश्ते होने में इससे कोई ऐब साबित नहीं हो सकता, क्योंकि आग और नूर का माद्दा एक ही है। एक ही जिन्स से हैं अलबत्ता अवारिज़ के लिहाज़ पर मुख़्तलिफ़ हैं यानी जिसके साथ धुएं की आमेज़िश है वह आग है और जो साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ है वह नूर है ।
जिस तरह मिट्टी, रेत, पत्थर, सुरमा वग़ैरह का माद्दा और जिन्स एक है अवारिज़ात के लिहाज़ से मुख्तलिफ़ हैं।
इबलीस तकब्बुर की वजह से मरदूद हो गया:
अल्लाह तआला के हुक्म से इंकार की वजह इबलीस का तकब्बुर था । जब रब तआला ने उससे पूछा कि तूने सज्दा क्यों नहीं किया हालांकि मेरा हुक्म था ? तो उसने जवाब देते हुए यह कहाः
मैं इससे बेहतर हूं क्योंकि तूने मुझे आग से पैदा किया और इसे मिट्टी से । यानी जो शान के लिहाज़ से बड़ा हो वह घटिया के सामने (मअज़ल्लाह) सज्दा नहीं करता । इबलीस हक़ीक़त में आदम अलैहिस्सलाम की शान को समझने से क़ासिर रहा। उसे यह मालूम न हो सका कि अल्लाह के नबी की शान फ़रिश्तों से बुलंद होती है। रब तआला ने इरशाद फ़रमायाः
तू जन्नत से निकल जा! तू मरदूद है और बेशक क़यामत तक तुझ पर लानत है। सालहा साल तक इबादत करने वाला, रब का मुकर्रब, नबी की शान में गुस्ताख़ी करने से एक पल भर में मरदूद हो गया। जन्नत से निकाल दिया गया। क़यामत तक लानत का मुस्तहिक ठहरा दिया गया ।
शैतान की दरख्वास्त की मंजूरी :
बोला मुझे फुरसत दे उस दिन तक कि लोग उठाये जायें फरमायाः तुझे मोहलत है, बोला तो क़सम उसकी कि तूने मुझे गुमराह किया मैं ज़रूर तेरे सीधे रास्ते पर उनकी ताक में बैठूंगा फिर ज़रूर मैं उनके पास आऊंगा उनके आगे और उनके पीछे और उनके दाहिने और उनके बायें से और तू उनमें से अक्सर को शुक्रगुज़ार नहीं पायेगा।
शैतान यह मोहलत लोगों के उठाये जाने तक तलब करना चाहता था ताकि मौत की सख़्ती से बच जाये लेकिन शैतान की यह बात तो न मानी गई अलबत्ता पहली मर्तबा सूर फूंकने तक उसको मोहलत दे दी गई सूरः नहल में फ़रमायाः
बेशक तुझे एक मुक़र्ररा वक़्त तक यानी पहले नफ़ख़ा तक मोहलत है, यानी पहली मर्तबा सूर फूंकने पर शैतान भी मर जायेगा। अलबत्ता उस वक़्त तक उसे मोहलत है कि वह चारों तरफ़ से घेरा डाल कर इंसानों के दिलों में वसवसे डालता रहे और उन्हें बातिल राह की तरफ मायल करता रहे और कुछ लोगों को इताअत से रोक सके और गुमराही में डाल सके।
अगरचे शैतान इंसानों को शुबहात और बुराइयों में वाकेय करने का पक्का इरादा कर चुका था और उसे उम्मीद भी थी कि वह अपने मक़सद में कामयाब होगा लेकिन फिर भी उसने कहा कि तू उनमें से अक्सर को शुक्रगुज़ार नहीं पायोग । दूसरे मकाम पर शैतान ने नेक लोगों पर अपना दाव चलाने से आजिज़ होने का यूं ज़िक्र किया ।
बोला ऐ रब मेरे! क़सम उसकी कि तूने मुझे गुमराह किया मैं उन्हें ज़मीन में भुलावे दूंगा और ज़रूर मैं उन सब को बे राह करूंगा मगर जो उनमें तेरे चुने हुए बंदे हैं ।
शैतान ने कहा कि मैं लोगों पर बुरे आमाल अच्छे और मुज़य्यन करके पेश करूंगा इस तरह वह मेरे बहकाने से सीधी राह से हट जायेंगे अलबत्ता ऐ अल्लाह तेरे नेक, मुखलिस और बरगुज़ीदा बंदों पर मेरे वरग़लाने का कोई असर नहीं होगा।
अल्लाह तआला ने भी शैतान को बता दिया था ।
बेशक जो मेरे बंदे हैं उन पर तेरा कुछ क़ाबू नहीं ।
शैतानी वसवसे के असर होने या न होने के लिहाज़ से पांच क़िस्में :
इंसान जिस्म और रूह का मजमूआ है रूह आलमे कुद्स की एक लतीफ़ मखलूक है जिसमें आलमे बाला के हक़ायक व कमालात और तमाम मनाफ़े पाये जाते हैं और जिस्म की तख़लीक मिट्टी से हुई इस लिये इसमें माद्दी असरात और खुसूसियात और ज़मीन की मख़लूकात वाले कमालात पाये जाते हैं ।
अल्लाह तआला का ख़लीफ़ा बनने की इस्तेदाद हर इंसान को जिस्म और रूह के ज़िम्न में अता हुई लेकिन शैतान ने इंसान को जो इस नेमत से महरूम करने की कोशिश की है उसके नतीजे में इंसानों के पांच गरोह बन गये।
पहला गरोह : वह है जो पूरी तरह शैतान के कब्ज़े में आकर ख़िलाफ़ते इलाहया से बग़ावत कर बैठा उसने ख़िलाफ़त की इस्तेदाद बिल्कुल जाया कर दी। अल्लाह तआला की तौहीद और उसकी मारफ्त से उसका कोई ताल्लुक न रहा दोनों जहानों की नेक बख़्ती और हमेशा की नजात की राहों से दूर जा पड़ा, कोई रूहानी कमाल हासिल करने की उसमें ताक़त न रही यहां तक कि माद्दी फवायद जानने और उन्हें हासिल करने से भी यह महरूम रहा, यह वह लोग हैं जो अक्ल व ख़िरद से ख़ाली हैं जाहिल काफिर और मुश्कि हैं।
दूसरा गरोह : वह जिस में जिस्मानी इस्तेदाद तो बाक़ी रही मगर शैतान के भटकाने से भटक गया और रूहानी इस्तेदाद को जाया कर दिया, इसलिये रूहानी तकाज़ों को बरुए कार लाने से वह महरूम हो गया। मारफ्ते इलाहया तो दरकिनार अल्लाह तआला की हस्ती से भी मुनकिर हो गया, उसने सिर्फ जिस्म और माद्दा को अपना मक़सद समझ लिया और अपनी बक़िया इस्तेदाद का रुख माद्दियात ही की तरफ मोड़ दिया, वह अकली पेचीदगियों में गुम होकर रह गये, बाज़ ने जदीद इंकिशाफात और माद्दी ईजादात में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल कर ली, बेशुमार मुफीद चीजें ईजाद कीं, फ़िज़ा में उड़ने वाले तैयारे, ख़ला में नूर व सय्यारों के ज़रिये ज़मीन व आसमान तक राब्ते कायम कर लिये । हैरत अंगेज़ आलात ईजाद कर लिये अब उनकी तरक़्क़ी का आखरी मरहला है कि उन्होंने बनी नूअ इंसान की हलाकत के लिये हज़ारों मील तक मार करने वाले मिज़ाईल तैयार कर लिये। एटम बम, नीपाम बम बनाये, आवाज़ से ज़्यादा तेज़ रफ़्तार हवाई जहाज़ तैयार किये जिनके ज़रिये चंद सैकेंडों में रूए जमीन को हलाकत खेज़ मंज़र में तबदील किया जा सकता है और एटम बमों के ज़रिये कुर्रए अर्ज़ को आंख झपकने की मिक़दार में उड़ाकर तबाह व बर्बाद कर देना आसान है। ख़िलाफ़ते इलाहया की वह इस्तेदाद जो बनी नूअ इंसान की जिस्मानी, रूहानी, दुनियावी, उख़वरी फ़वायद के लिये थी उसे इंसानों के हलाक कर देने वाले आलात के लिये वक़्फ़ कर दिया गया ।
अब मामला यहां तक पहुंच चुका है कि इन हथियारों को ईजाद करने वाले खुद अपने आपको उन की ज़द में महसूस कर रहे हैं उन्हें हर वक़्त यह ख़तरा लाहिक है कि हमारे ही ईजाद किये हुए आलात न मालूम किस वक़्त हम पर फट पड़ें और कुर्रए अर्ज़ के साथ हम भी लुक्मए अजल बन कर न रह जायें ।
तीसरा गरोह : वह है जिन में ख़िलाफ़ते इलाहया की इस्तेदाद तो मौजूद थी मगर शैतान के वरग़लाने का इतना असर उन पर ज़रूर हुआ कि वह ग़फ़लत और सुस्ती का शिकार हो गये कि अपनी इस्तेदाद को पूरी तरह बरुए कार ना लाये, यह वह आम मुसलमान लोग हैं जिन्होंने क़दरे क़लील जिस्मानी और रूहानी मुनाफा हासिल किये मगर अपनी सलाहियतों को पूरी तरह काम में न लाने की वजह से रूहानियात या माद्दियात पर कामिल तसर्रुफ हासिल न कर सके, बेशक वह मनसबे ख़िलाफ़त पर फायज़ नहीं हुए मगर उन्होंने ख़िलाफ़ते इलाहया से बग़ावत भी नहीं की, यानी ईमान से हाथ नहीं धोए ।
लेकिन यह ख़्याल रहे कि इस गरोह में फिर दो किस्में हैं एक वह जिन पर शैतान का असर कम होता है और दूसरे वह जिन पर शैतान का बहुत ज्यादा असर होता है अगरचे ईमान से दूर तो नहीं होते लेकिन बहुत ही ज़्यादा गुनाहों में मुब्तला हो जाते हैं।
चौथा गरोह : अल्लाह के उन ख़ास बंदों का है जिन में अल्लाह तआला की अता फ़रमाई हुई जिस्मानी रूहानी इल्मी, अमली पूरी इस्तेदाद मौजूद थी और शैतान के भटकाने का उनकी इस्तेदाद को कोई नक्सान न पहुंच सका। अल्लाह तआला ने शैतान को मुखातिब फ़रमा कर पहले ही फ़रमा दिया था।
बेशक मेरे ख़ास बंदों पर तुझे कोई ग़ल्बा हासिल न होगा।
यह मुक़द्दस गरोह अंबियाए किराम और उनके मानने वाले कामिलीन पर मुश्तमिल है जिन्होंने अल्लाह तआला की अता फ़रमाई हुई इस्तेदाद को पूरी तरह काम में लाकर ख़िलाफ़ते इलाहया के मनसब को पाया, हिकमत व मसलेहत के मुताबिक रूहानियत व माद्दियत पर मुतसर्रिफ होने और ख़िलाफ़ते इलाहया के तक़ाजों को उन्होंने सही मायनों में पाए तकमील तक पहुंचाया।
पांचवा गरोह : वह है जिस ने अपने ख्याल में सिर्फ रूह और उसके तक़ाज़ों को पेशे नज़र रखा और जिस्मानियात और माद्दियात को नजर अंदाज़ कर दिया यह वह लोग हैं जो अपने अपने ख़्याल के मुताबिक रियाज़त व मुजाहिदा में मशगूल रहे उन में कुछ वह होते हैं जिन का अल्लाह तआला की वहदानियत पर ईमान होता है वह शैतान के भटकाने से महफूज़ रहते हैं और कुछ वह होते हैं जो अल्लाह तआला की वहदानियत पर ईमान नहीं रखते उनको शैतान नजात की राह से मुकम्मल तौर पर हटा देता है अपनी रियाज़त और मुजाहिदा से किसी ने फायदा उठाकर रूहानियत को हासिल कर लिया अलबत्ता दुनियावी और माद्दी मुनाफा से महरूम रहे और किसी को अपने ख़्याल के मुताबिक अपनी की हुई रियाज़त व मुजाहिदा से रूहानियत मिली और न ही दुनियावी और माद्दी मुनाफ़ा हासिल हुए।
शैतान ने अपनी बख़्शिश का मौका क्यू गंवाया?
शैतान ने इब्तेदाई तौर पर आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा करने से इंकार कर दिया और पीठ फेर कर खड़ा हो गया फ़रिश्तों ने एक सज्दा पहले किया और फिर उसे खड़ा देखकर दूसरा सज्दा बतौर शुक्र किया ।(alert-passed)
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में शैतान ने मूसा अलैहिस्सलाम को कहा कि तुम अल्लाह तआला से कलाम करते वक़्त मेरी सिफारिश भी कर देना। आपने जब रब तआला के हुजूर अर्ज़ किया तो अल्लाह तआला ने कहा इबलीस को जाकर कह दो कि आदम अलैहिस्सलाम की क़ब्र को जाकर सज्दा कर लो तो मैं तुम्हारे गुनाह माफ़ कर दूंगा, यह कहने लगा ज़िन्दा आदम को सज्दा नहीं किया तो अब मुर्दा आदम को सज्दा कैसे करूं? इस तरह उसने इंकार किया ।
बाज़ रिवायात में है कि एक लाख साल के बाद इबलीस को जहन्नम से निकाल कर और आदम अलैहिस्सलाम को जन्नत से निकाल कर फिर उसे कहा जायेगा कि आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा कर लेकिन यह इंकार कर देगा उसे फिर जहन्नम की आग में डाल दिया जायेगा। फ़ायदा : नबी को इस दुनिया से रुख़सत होने के बाद कब्र की ज़िन्दगी में सबसे पहले मुर्दा कहने वाला शैतान है अब भी उसके चेले, चमचे अंबियाए किराम को मुर्दा कह रहे हैं, और जो काम बाप करे उसकी औलाद वही काम करे तो कोई ख़ास ताज्जुब की बात नहीं ख़्वाह हक़ीकी औलाद हो या मानवी औलाद हो ।
इबलीस का नाम इबलीस या शैतान क्यों?
इबलीस का मरदूद होने से पहले सुरयानी ज़बान में नाम अज़ाज़ील और अरबी ज़बान में हारिस था। जब अल्लाह तआला के हुक्म का इंकार किया तो इबलीस नाम हुआ जिसका मायने है खैर से दूर होना और अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद होना, उसे शैतान भी कहा गया है अगर उसका माद्दा शतन हो तो मायने होगा हक़ से दूर होने वाला, अगर वह शैताह से माखूज़ है तो मायने होगा हलाक होने वाला और जल जाने वाला ।(alert-passed)
📗 तज़किरतुल अंबिया